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Sunday, January 19, 2025

सोने के लिए बिस्तर तक नहीं….बड़ी अजीब है इस परिवार की कहानी, जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

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Maharajganj News: महराजगंज जिले के सिसवा– निचलौल रोड पर एक परिवार ऐसा है, जो किसी तरह अपना जीवन काट रहा है. अपना जीवन बिताने के लिए यह लोग पत्थर पर कारीगरी करते हैं और इसे बेचते हैं. रहने के लिए मकान नहीं है, जिसकी वजह…और पढ़ें

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सड़क के किनारे रह रहा परिवार

महराजगंज: आज के समय में जहां लोग भौतिक सुख सुविधाओं में जी रहे हैं और छोटी से छोटी कमी को लेकर भी शिकायत करते हैं, तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो दयनीय परिस्थितियों में भी अपना जीवन बिता रहे हैं. महराजगंज जिले के सिसवा–निचलौल पर सिसवा से कुछ ही दूरी पर एक परिवार ऐसा है, जो सड़क के किनारे झोपड़ी में अपना जीवन काट रहा है. इस परिवार की स्थिति को देखकर शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसकी आंखों में आंसू नहीं होगा. इस परिवार के मुखिया रमेश ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि वह बीते 35 सालों से इस जगह पर सड़क के किनारे झोपड़ी डालकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. वह सिलबट्टा बनाकर बेचते हैं, जिससे उनके परिवार का गुजर बसर हो रहा है.

घर की महिलाएं भी गांव में जाकर करती हैं काम

रमेश ने बताया कि उनके परिवार की महिलाएं भी गांव-गांव में जाकर काम करती हैं और कुछ अनाज और पैसे लेकर आती हैं. इसके साथ ही उनके घर के बच्चे भी ईंट के भट्ठों पर काम करते हैं, जिससे उन्हें कुछ पैसा मिल जाता है. इसके बावजूद भी उनकी स्थिति इतनी खराब है कि किसी तरह सिर्फ उनके घर का राशन पानी ही चल पा रहा है. उनके घर में प्रवेश करने पर यह देखने को मिलता है कि घर में घरेलू सामान के नाम पर चौकी, एक टूटी अलमारी, एक मिट्टी का चूल्हा और देवी देवताओं की कुछ फोटो ही मिलती है. उन्होंने बताया कि उनके घर में एक दो ही बिस्तर हैं, जिन्हें उनके बच्चे ईंट के भट्टों पर लेकर जाते हैं और वही बिस्तर यहां लेकर आते हैं, तब ये लोग सोते हैं.

नहीं बिकता समान तो उदास होकर लौटते हैं घर

रमेश के घर के बच्चे से जब पूछा गया कि वह पढ़ने क्यों नहीं जाता है, तो उसने बताया कि इतने पैसे नहीं हैं कि पढ़ाई कर सकूं. इसके साथ ही उसने बताया कि उसे याद भी नहीं है कि कब उसने अच्छा खाना खाया था. इस परिवार की स्थिति कुछ ऐसी है कि बारिश के मौसम में उनका जीवन दुश्वार हो जाता है. बारिश के मौसम में पानी झोपडी के अंदर न आने पाए.  इसके लिए वह झोपड़ी के ऊपर पॉलीथिन लगा देते हैं. उसके बाद घर के अंदर रहना होता है. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि आज के समय में हर घर में आधुनिक मशीन होने की वजह से भी उनके काम को काफी नुकसान हुआ है, जो 100% से घटकर सिर्फ 25% ही रह गया है. बहुत बार ऐसा होता है कि जब वह गांव में सिलबट्टा लेकर जाते हैं, लेकिन उन्हें उदास होकर घर ही लौटना पड़ता है.

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