महराजगंज: हालैंड के रहने वाले दंपति, राधे और उनके पति लक्ष्मी नारायण गोपाल, ने हाल ही में महाराजगंज जिले के सिसवा स्थित ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शाखा में एक आध्यात्मिक यात्रा की. इस यात्रा के दौरान, दोनों ने भारतीय संस्कृति और जीवनशैली के प्रति अपने गहरे प्रेम और सम्मान को व्यक्त किया.
राधे और लक्ष्मी नारायण गोपाल का भारत से जुड़ाव केवल एक यात्रा तक सीमित नहीं है. उन्होंने बताया कि वे भारत आते हैं और यहां के सत्संग से जुड़े रहते हैं. राधे ने लोकल 18 से बातचीत में कहा, “भारत की संस्कृति में एक अद्भुत गहराई है. यहां की परंपराएं, रीति-रिवाज और लोगों की मेहमाननवाज़ी ने हमें बहुत प्रभावित किया है.” उन्होंने कहा कि उन्हें भारतीय खान-पान, त्योहारों और यहां के लोगों की जीवनशैली का आनंद मिलता है. यहां का हर पल एक नया अनुभव होता है और हम यहां की खुशियों और शांति को महसूस करते हैं.
मानसिक शांति और सकारात्मकता के लिए प्रेरित
राधे और लक्ष्मी नारायण गोपाल की दो बेटियां हैं, जिनका नाम आराधना और ज्योति है. उन्होंने बताया कि वे अपनी बेटियों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराने का प्रयास कर रहे हैं. ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय न केवल आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करता है, बल्कि यह लोगों को मानसिक शांति और सकारात्मकता की ओर भी प्रेरित करता है.
यहां आने का अलग मजा
इस संस्थान में आयोजित सत्संग कार्यक्रमों में राधे और लक्ष्मी नारायण भाग लेते हैं. उन्होंने बताया कि इन कार्यक्रमों में भाग लेने से उन्हें मानसिक शांति मिलती है और वे अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव महसूस करते हैं. राधे और लक्ष्मी नारायण गोपाल जैसे विदेशी दंपतियों का भारत आना और यहां की संस्कृति को अपनाना सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक बेहतरीन उदाहरण है. यह न केवल भारत की समृद्ध विरासत को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे विभिन्न संस्कृतियां एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हो सकती हैं.
संस्कृतियों का सम्मान करने की जरूरत
हालैंड के राधे और लक्ष्मी नारायण गोपाल का भारत के प्रति प्रेम और लगाव इस बात का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति का जादू विश्वभर में फैल रहा है. उनकी यात्रा न केवल व्यक्तिगत विकास का माध्यम बनी है, बल्कि यह एक प्रेरणा भी है कि कैसे हम सभी को विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान करना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए. ऐसे अनुभव हमें यह सिखाते हैं कि मानवता की एकता सबसे महत्वपूर्ण है, चाहे हम किसी भी देश या संस्कृति से क्यों न हों.
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FIRST PUBLISHED : November 6, 2024, 12:46 IST