यह भावना इतनी मजबूत है कि जेएमएम के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां ऐसे लोगों के लिए आरक्षित करने के लिए दो बार विधेयक पारित किया, जिनके वंश का पता 1932 के भूमि रिकॉर्ड से लग सकता है। विधेयक दो बार राजभवन ने लौटा दिया। दूसरी बार, दिसंबर 2023 में इसे भारत के अटॉर्नी जनरल की राय के साथ लौटाया गया। एजी की राय में यह समानता की गारंटी वाले संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर सकता है। उनका सुझाव था कि चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों को ‘स्थानीय लोगों’ के लिए और अन्य नौकरियों को ‘जहां तक संभव हो’ स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने के वास्ते विधेयक में संशोधन करना चाहिए और अन्य चीजें समान रहनी चाहिए। हालांकि, हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार ने यह बताते हुए विधेयक बिना किसी संशोधन के पारित कर दिया कि एजी की चिंताएं इसमें समाहित हैं।
बीजेपी ने विधानसभा में विधेयक का विरोध नहीं किया लेकिन कहा कि सरकार कार्यकारी आदेश के जरिये स्थानीय लोगों के लिए नौकरियां सुनिश्चित कर सकती है। झामुमो का जवाब था कि विधेयक को भविष्य में किसी भी न्यायिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए यह सुनिश्चित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि इसे संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए। अब जयराम महतो के मैदान में कूदने से, राज्य की अधिवास नीति जहां लगभग 28 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है, एक बड़ा मुद्दा बनने की संभावना है।
एक कार्यक्रम में यह पूछने पर कि वह हिंसा के पैरोकार क्यों दिखते हैं और हमेशा आक्रामक क्यों रहते हैं, महतो ने कथित अन्याय वाले उदाहरण खारिज कर दिए। उन्होंने आरोप लगाया कि कोल इंडिया लिमिटेड की धनबाद स्थित सार्वजनिक क्षेत्र की सहायक कंपनी- भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) ने कई काम आउटसोर्स कर दिए हैं। उन्होंने दो निजी कंपनियों का नाम भी लिए जो ऐसे लोगों को छह हजार रुपये प्रति माह दे रही थीं जिन्हें बीसीसीएल नौकरी देता तो 32,000 रुपये मिलते। उनके विश्वविद्यालय में एक निजी कंपनी नियुक्ति पत्र बांट रही थी लेकिन साथ ही त्यागपत्र भी ले रही थी। आरोप लगाया कि गोमिया की विस्फोटक फैक्ट्री में निजी कंपनियां कागज पर 20 हजार रुपये वेतन पर नौकरी दे रही हैं लेकिन इस शर्त पर कि आठ हजार रुपये सुपरवाइजर को देने होंगे।
उन्होंने कहा- “हां, मेरा खून खौलता है…सही है कि मैं आक्रामक हो जाता हूं… कौन नहीं करेगा? ये अन्याय खत्म कर दो, देखना मैं भी प्रेम पर कविताएं लिखने लगूंगा …”। यह गुस्सैल युवा शायद ही कभी मुस्कुराता है। राजनेता और राजनीतिक विश्लेषक इसी आधार पर एक राजनेता के रूप में उनकी क्षमता को कमतर आंकते हैं, और लचीलेपन की कमी को उनकी कमजोरी बताते हैं। हालांकि जैसा महतो खुद भी मानते हैं, शायद यही उनकी ताकत है। इस साल की शुरुआत में गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में उन्हें मिले 3.27 लाख वोटों की और भला क्या व्याख्या हो सकती है?