गुजरात में लगातार हो रही बारिश से बाढ़ की स्थिति विकराल हो गई है। चक्रवात असना ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। 25 अगस्त से भारी बारिश और बाढ़ के कारण राज्य के 25 जिलों में कम से कम 40 लोग मारे गए हैं और 55,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। वहीं, आईआईटी गांधीनगर के एक अध्ययन में सामने आया है कि गुजरात के 33 जिलों में से 12 में एक दिन में कुल वर्षा 10 साल की अवधि से अधिक हुई।
आईएमडी ने भरूच और वलसाड जैसे स्थानों के लिए रेड अलर्ट जारी किया है। मंगलवार को सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक भरूच के वालिया में सबसे अधिक 156 मिमी बारिश दर्ज की गई। इसके बाद नेत्रंग में 127 मिमी, सूरत के उमरपाड़ा में 105 मिमी, वलसाड में 104 मिमी और मेहसाणा के जोताना में 95 मिमी बारिश दर्ज की गई।
आईएमडी ने कहा कि इस हफ्ते के अंत तक राज्य में भारी से हल्की बारिश जारी रहने की उम्मीद है। राज्य के 15,000 से अधिक गांवों को बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है। चक्रवात असना ने गुजरात में बाढ़ की स्थिति को गंभीर बना दिया है।
वहीं, आईआईटी गांधीनगर में मशीन इंटेलिजेंस एंड रेजिलिएंस लेबोरेटरी (एमआईआर लैब) के एक अध्ययन में पाया गया कि गुजरात के 33 जिलों में से 12 में एक दिन में 10 साल की अवधि से अधिक बारिश हुई। 17 जिलों में दो दिनों में कुल बारिश 10 साल की अवधि से अधिक दर्ज की गई। जामनगर, मोरबी और देवभूमि द्वारका में अभी तक बारिश का स्तर 50 साल की सीमा से ज्यादा रहा। तीन दिनों में 15 जिलों में 10 साल की अवधि से अधिक बारिश होने की सूचना है।
एमआईआर लैब के प्रमुख इन्वेस्टिगेटर उदित भाटिया ने कहा कि शहरी बाढ़ की बारीकियों को समझने की जरूरत है। डेटा की विस्तृत जानकारी शहरी बाढ़ की बारीकियों को पूरी तरह से पकड़ नहीं सकती है। क्योंकि ये अक्सर छोटी अवधि, उच्च तीव्रता वाली वर्षा के परिणामस्वरूप होती है जो शहर की जल निकासी प्रणालियों को प्रभावित करती है।
आईआईटी के अध्ययन ने वडोदरा को इस घटना का प्रासंगिक उदाहरण बताया। यहां महज तीन दिन की बारिश में ही गंभीर बाढ़ का अनुभव हुआ। इसमें कहा गया है कि इससे पता चलता है कि हालांकि बारिश अभूतपूर्व नहीं थी, लेकिन बाढ़ संभावित क्षेत्रों में व्यापक शहरी विकास, भूमि की ऊंचाई में बदलाव और तेजी से शहरीकरण के कारण जल निकासी प्रणालियों में रुकावट जैसे कारक बाढ़ को बढ़ाने में सहायक रहे।
अध्ययन में कहा गया है कि भारत के पश्चिमी तट पर ऐसी असामान्य मौसम की घटनाओं की पुनरावृत्ति शहरी नियोजन और बुनियादी ढांचे के लचीलेपन पर पुनर्विचार करने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।