हालांकि, लोकसभा चुनाव 2024 तक आते-आते फिर चुनौतियां दुष्यंत के दरवाजे को खटखटाने लगीं. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा और जजपा का गठबंधन टूट गया. जजपा हिसार और भिवानी सीट भाजपा से लोकसभा चुनाव में मांग रही थी, लेकिन भाजपा सिर्फ रोहतक सीट दे रही थी. दुष्यंत ने गठबंधन तोड़ने का निर्णय लिया और पद छोड़ दिया. इसके बाद उनके छह विधायकों ने पाला बदल लिया. अब सिर्फ वो खुद, मां नैना चौटाला, अमरजीत सिंह ढांडा और रामकुमार गौतम ही विधायक के तौर पर बचे हैं. इनमें भी रामकुमार गौतम और अमरजीत ढांडा के बारे में दावे हैं कि वो कभी भी पार्टी छोड़ सकते हैं. ऐसे में सिर्फ मां-बेटा ही विधायक के तौर पर पार्टी में रह जाएंगे.
वोट प्रतिशत भी घट गया
इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में जहां जजपा ने 14.9 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे महज 0.87 प्रतिशत मिले. इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटा है. मतों के इस गिरावट के पीछे सबसे बड़ा कारण किसान आंदोलन को बताया जा रहा है. भाजपा के साथ गठबंधन सरकार में रहते हुए दुष्यंत चौटाला ने किसान आंदोलन के पक्ष में कोई बयान नहीं दिया. साथ ही गठबंधन भी नहीं तोड़ा. ऐसे में भाजपा से नाराज वोटर दुष्यंत चौटाला से भी नाराज है. नाराजगी की खास वजह यह है कि इस आंदोलन में जाटों की भागीदारी ज्यादा थी और यही जजपा का वोट बैंक था. इसी ने इनेलो का साथ छोड़कर जजपा को वोट दिया था.
कैसे समझाएंगे वोटरों को?
अब दुष्यंत के सामने दिक्कत यह है कि वे किस तरह अपने वोटर्स को समझाएंगे? किसान आंदोलन के समय साथ न देने की क्या वजह बताएंगे? शायद यही कारण है कि जजपा ने आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर आजाद साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया है. दुष्यंत चौटाला ने इसका ऐलान करते हुए कहा कि इस बार हरियाणा में हम संयुक्त रूप से 90 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं. 70 सीट पर जेजेपी चुनाव लड़ने जा रही है और 20 सीटों पर आजाद समाज पार्टी चुनाव लड़ रही है. इसके जरिए दुष्यंत की कोशिश है कि जाट वोटर्स के साथ कुछ अन्य जातियों के वोट भी खींचे जाएं. साथ ही वो कांग्रेस और भाजपा में टिकट बंटवारे के बाद बगावत का भी इंतजार कर रहे हैं. इन बागियों को टिकट देकर दुष्यंत अपनी खोई जमीन हासिल करने की योजना बना रहे हैं. हालांकि, यह तो हरियाणा की जनता तय करेगी कि वो दुष्यंत के लिए क्या फैसला तय करती है…