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Friday, September 20, 2024

पूजा खेडकर को बड़ी राहत, दिल्ली हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी पर 21 अगस्त तक लगाई रोक

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नई दिल्ली:

धोखाधड़ी और गलत तरीके से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) तथा दिव्यांग कोटा का लाभ हासिल करने की आरोपी भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) की पूर्व प्रशिक्षु अधिकारी पूजा खेडकर को दिल्ली उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली है. दिल्ली उच्च न्यायालय ने खेडकर की अग्रिम जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस और यूपीएसी को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. साथ ही 21 अगस्त तक उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है. खेडकर की अग्रिम जमानत पर 21 अगस्त को सुनवाई होगी.

‘‘गहन जांच की आवश्यकता है”

पूजा खेडकर ने अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत के लिए बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था. यूपीएससी ने 31 जुलाई को खेडकर की उम्मीदवारी रद्द कर दी थी और उन्हें भविष्य की परीक्षाओं से वंचित कर दिया. एक अगस्त को यहां की एक सत्र अदालत ने खेडकर को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उनके खिलाफ गंभीर आरोप हैं जिनकी ‘‘गहन जांच की आवश्यकता है.”

खेडकर ने सत्र अदालत में दायर याचिका में कहा था कि उन पर ‘‘तुरंत गिरफ्तारी का खतरा मंडरा रहा है.” सत्र अदालत ने कहा था, ‘‘पूरी साजिश का पता लगाने और साजिश में शामिल अन्य व्यक्तियों की संलिप्तता स्थापित करने के लिए आरोपी से हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता है.”

न्यायाधीश ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया था कि वह अपनी जांच पूरी निष्पक्षता से करे, ताकि पता लगाया जा सके कि हाल के दिनों में किन उम्मीदवारों की सिफारिश की गई थी, जिन्होंने अवैध रूप से ऐसे लाभ उठाए होंगे तथा क्या यूपीएससी के किसी व्यक्ति ने भी खेडकर की मदद की थी.

पिता की बढ़ी मुश्किलें

पूजा खेडकर के पिता दिलीप खेडकर के खिलाफ पुणे जिले में एक लोक सेवक को धमकाने और उनके काम में बाधा डालने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की है. अधिकारियों ने बताया कि पुणे जिलाधिकारी कार्यालय के एक तहसीलदार स्तर के अधिकारी द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर यहां बंडगार्डन पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया है. एक अधिकारी ने कहा, ‘‘शिकायत में कहा गया कि सहायक जिलाधिकारी के रूप में पूजा खेडकर की तैनाती के दौरान दिलीप खेडकर ने कथित तौर पर तहसीलदार दीपक अकाडे के खिलाफ धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया था और उनसे अपनी बेटी के लिए एक केबिन आवंटित करने को कहा था, जबकि दिलीप को प्रशासनिक कामकाज में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है.’





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