कोयंबटूर के थोंडामुथुर स्थित ईशा फाउंडेशन के आश्रम में सोमवार को 150 पुलिसकर्मियों की एक टुकड़ी ने छापेमारी की। इस ऑपरेशन का नेतृत्व एक सहायक उप-निरीक्षक रैंक के अधिकारी ने किया, जिसमें तीन डीएसपी भी शामिल थे। यह कार्रवाई मद्रास हाई कोर्ट द्वारा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों पर रिपोर्ट मांगे जाने के एक दिन बाद की गई।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस छानबीन में आश्रम के सभी निवासियों का विस्तृत सत्यापन और कमरों की तलाशी ली जा रही है। यह छापेमारी उस याचिका के बाद की गई, जिसमें एक रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एस. कमराज ने दावा किया था कि उनकी दो बेटियां, गीता कमराज (42) और लता कमराज (39), फाउंडेशन में जबरन रखी गई हैं। प्रोफेसर ने आरोप लगाया कि ईशा फाउंडेशन लोगों का मानसिक नियंत्रण कर उन्हें संन्यासी बना रहा है और उनके परिवारों से संपर्क तोड़ रहा है।
याचिका पर सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव (सदगुरु) के जीवन में पाए गए विरोधाभासों पर सवाल उठाए। जस्टिस एस.एम. सुब्रमण्यम और वी. शिवगणनम ने पूछा कि साधगुरु, जिन्होंने अपनी बेटी की शादी कर उसे सुखी जीवन दिया है, अन्य युवतियों को सिर मुंडवाकर संन्यासी जीवन जीने के लिए क्यों प्रेरित कर रहे हैं?
प्रोफेसर कमराज की याचिका में उनकी बेटियों की पेशेवर उपलब्धियों का भी उल्लेख किया गया है। याचिका के अनुसार, उनकी बड़ी बेटी यूके के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से मेक्ट्रोनिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उसने 2008 में अपने पति से तलाक के बाद ईशा फाउंडेशन में योग कक्षाएं लेना शुरू किया था। बाद में उनकी छोटी बेटी, जो सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, वह भी आश्रम में रहने लगी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि फाउंडेशन ने उनकी बेटियों को ऐसा भोजन और दवाइयां दीं, जिससे उनकी मानसिक स्थिति कमजोर हो गई और उन्होंने परिवार से संपर्क तोड़ दिया।
हालांकि, कोर्ट में पेश होने पर दोनों बेटियों ने दावा किया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और उन पर कोई दबाव नहीं है। लेकिन न्यायाधीश पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हुए। जस्टिस शिवगणनम ने कहा, “हम जानना चाहते हैं कि अपनी बेटी की शादी करने और उसे अच्छा जीवन देने वाले व्यक्ति ने दूसरों की बेटियों को संन्यासी जीवन जीने के लिए क्यों प्रेरित किया है?” याचिका में फाउंडेशन के एक डॉक्टर के खिलाफ पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले का भी उल्लेख किया गया।
याचिकाकर्ता के अनुसार, उस डॉक्टर पर आदिवासी सरकारी स्कूल की 12 लड़कियों से छेड़छाड़ का आरोप है। ईशा फाउंडेशन की ओर से अधिवक्ता के. राजेंद्र कुमार ने तर्क दिया कि वयस्क अपने जीवन के फैसले स्वयं लेने का अधिकार रखते हैं, जिसमें आध्यात्मिक मार्ग चुनना भी शामिल है। उन्होंने कहा कि कोर्ट का इस प्रकार के निजी फैसलों में हस्तक्षेप अनुचित है, क्योंकि दोनों बेटियां अपनी मर्जी से वहां रह रही हैं।