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Saturday, March 22, 2025

दलित कोटे में कोटा मिलने से किन जातियों को मिलेगा फायदा, SC के फैसले का क्या असर

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अनुसूचित जातियों को 15 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था संविधान में की गई है। यही नहीं इस कोटे में कई राज्यों ने सब-कोटा जोड़ा दिया था, जिसे लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों पर सुनवाई करते हुए अदालत ने इसे सही करार दिया है। इसके साथ ही उसने 2004 के चिन्नैया केस में आए सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि यह सरकार का अधिकार है कि वह कोटे के अंदर कोटा दे सके। अदालत ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति वर्ग में समरूपता नहीं है। इसके तहत अलग-अलग जातियां आती हैं और उन्हें अलग-अलग ढंग के भेदभाव और परेशानियों को सामना करना पड़ता है।

7 जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि दलित समुदाय में समरूपता नहीं है। ऐसे में राज्य सरकारें वेटेज के हिसाब से सब-कोटा तय कर सकती हैं। यह देखते हुए ऐसा फैसला हो सकता है कि किन जातियों को ज्यादा भेदभाव का सामना करना पड़ता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिव बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ समेत कुल 6 जजों ने एकमत से इस पर मुहर लगाई। वहीं एक जज की राय अलग थी। अदालत ने यह भी कहा कि यह सब-कोटा जमीनी सर्वे के आधार पर ही देना चाहिए। पहले यह पता लगाना होगा कि किस जाति का सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दाखिलें मं कितना प्रतिनिधित्व है।  

कोटा के अंदर कोटा को SC ने दी मंजूरी, सब कैटेगरी बनाने का दिया अधिकार

इस तरह अदालत का यह फैसला विभिन्न राज्यों में दलित समाज की उन जातियों को फायदा पहुंचाएगा, जिनका प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम है। जैसे उत्तर प्रदेश में जाटव बिरादरी दलित समाज में अन्य की तुलना में अच्छी स्थिति में है। इसी तरह बिहार में पासवान जाति की तुलनात्मक स्थिति बेहतर है। ऐसे में मुसहर, वाल्मीकि, धोबी जैसी तमाम बिरादरियों के लिए अलग से सब-कोटा फायदा पहुंचा सकता है। इसी तरह पंजाब, हरियाणा जैसे तमाम राज्यों में दलित कोटे में भी वर्गीकरण करने से प्रत्येक जाति तक आरक्षण का समुचित लाभ पहुंचने की उम्मीद होगी।

जस्टिस गवई बोले- SC कोटे में भी होनी चाहिए क्रीमी लेयर

इस की सुनवाई के दौरान जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी का फैसला अलग रहा। उन्होंने कहा कि जाति के आधार पर ही एससी कोटा मिलता है। इस तरह जातीय पहचान के आधार पर जब कोटा मिलता ही है तो फिर उसमें भी बंटवारा करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति तो एकतरफ से समरूपता वाला ही वर्ग है। वहीं जस्टिस बीआर गवई ने इस दौरान यह जरूरत बताई कि एससी में भी क्रीमी लेयर की व्यवस्था होनी चाहिए और फायदा पा चुके लोगों को उससे अलग करके पीड़ितों को मौका देना चाहिए। 



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