Good or Bad Soap: साबुन लगाने का उद्येश्य स्किन में चिपकी गंदगी को बाहर निकालना होता है. इसलिए लोग साबुन लगाते हैं. लेकिन स्किन में साबुन घिसते-घिसते स्किन छिल भी सकता है और स्किन को ड्राई भी कर सकता है. इसलिए हर साबुन आपके लिए अच्छा हो जरूरी नहीं. आमतौर पर कोई साबुन आपकी स्किन के लिए कितना अच्छा है यह TFM से तय होता है. टीएफएम का मतलब होता है टोटल फैटी मैटेरियल. यानी साबुन फैट की मात्रा कितनी है. इसी से किसी साबुन की गुणवत्ता को परखा जाता है. साबुन में कितनी तरह की सामग्रियों का इस्तेमाल किया गया है, यही है फैटी मैटर. आमतौर पर पामीटिक एसिड, स्टेएरिक एसिड, ओलिक एसिड और सोडियम ओलिएट का इस्तेमाल साबुन में किया जाता है. ये सारे फैटी मैटर है और इसी से इसकी गुणवत्ता का पता लगता है.
TFM होता क्या है
टीएफएम से यह पता लगता है कि साबुन कितना शुद्ध है और यह आपकी स्किन के साथ-साथ आपकी हेल्थ पर क्या असर डालेगा. इंडियन एक्सप्रेस की खबर में डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. रिंकी कपूर कहती हैं कि आमतौर पर यह माना जाता है कि जिस साबुन में जितना अधिक TFM होता है वह उतना अधिक झाग पैदा करता है और वह उतना अधिक स्किन की सफाई करता है. हालांकि जिस साबुन में बहुत अधिक टीएफएम होता है वह टॉयलेट सोप में काम आता है. यह मुख्य रूप से पाम ऑयल का बना होता है और इसका पीएच भी बहुत ज्यादा होता है. टीएफएम किसी साबुन में कितना है यह साबुन के पैकेट पर लिखा होता है. अगर इसे स्किन में लगाया जाए तो स्किन ड्राई हो सकती है. दूसरी ओर एक सिंडेट सोप आता है. यह सिंथेटिक सर्फेक्टेंट के मिश्रण से बना होता है. इसका पीएच लेवल बहुत कम होता है और इसमें टीएफएम भी कम होता है. इससे स्किन को डैमेज होने का खतरा भी बहुत कम होता है. इसे सोप फ्री बार भी कहा जाता है. जिन लोगों की सेंसेटिव स्किन है डॉक्टर ऐसे लोगों को अक्सर यही साबुन लगाने की सलाह देते हैं.
कितना होना चाहिए TFM
मनिपाल असप्ताल में स्किन सेंटर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. मुक्ता सचदेव कहते हैं कि साबुन में 70 प्रतिशत टीएफएम या पाम ऑयल दावा किया जाता है. लेकिन अध्ययन में पाया गया है कि सिर्फ 25 प्रतिशत तक टीएफएम रहे तो भी यह झाग पैदा करने लगता है और स्किन से गंदगी निकाल सकता है. इसके बाद जो टीएफएम रहता है वह एक तरह से खराब ही हो जाता है. वास्तव में हमें 70 प्रतिशत तक टीएफएम की जरूरत है ही नहीं. हाल ही में जर्नल ऑफ सर्फेक्टेंट एंड डिटर्जेंट के अध्ययन में साफ तौर पर कहा गया है कि हमें नहाने के साबुन में 25 प्रतिशत टीएफएम में कटौती करने की जरूरत होती है.
कौन सा साबुन है बेहतर
डॉ. सचदेव ने बताया कि टीएफएम ज्यादा होने से वातावरण में ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन भी ज्यादा होता है. इसलिए हमें कम से कम टीएफएम वाले साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जिस साबुन में टीएफएम कम रहता है वह बहुत उच्च गुणवत्ता वाला होता है. यह हेल्थ और सौंदर्य दोनों के ठीक होता है. यह स्किन के नेचुरल बैरियर को मजबूत करता है लेकिन जिसमें ज्यादा टीएफएम होगा वह नेचुरल बैरियर को तोड़ देगा. इससे स्किन की सेंसिटिविटी बढ़ जाएगी.
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FIRST PUBLISHED : July 25, 2024, 18:05 IST