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Sunday, March 23, 2025

पहले ऐसे साबुन बनाते थे लोग; अब के महंगे साबुन का सच जान जाएंगे तो छुएंगे नहीं

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Agency:News18 Jharkhand

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Ayurvedic Soap: आजकल के कैमिकल युक्त साबुन त्वचा और बालों के लिए हानिकारक होते हैं, जबकि आयुर्वेदिक साबुन प्राकृतिक औषधि की तरह काम करता है. पलामू के शिव कुमार पांडे बताते हैं कि पारंपरिक साबुन रीठा, आंवला, भृं…और पढ़ें

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प्रतीकात्मक

हाइलाइट्स

  • आयुर्वेदिक साबुन त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद होते हैं.
  • आजकल के साबुन कैमिकल और कास्टिक बेस्ड होते हैं.
  • आयुर्वेदिक साबुन बनाने में 1.5 से 2 महीने का समय लगता था.

पलामू. समय के साथ हर चीज में बदलाव आया है. आजकल हम जो साबुन नहाने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वह शरीर और बालों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है. जबकि आयुर्वेदिक तरीके से तैयार किया गया साबुन रामबाण औषधि की तरह काम करता है. यह कहना है आयुर्वेद के जानकारों का.

पलामू जिले के डाल्टनगंज के रेड़मा निवासी शिव कुमार पांडे वर्षों से आयुर्वेदिक औषधियों का निर्माण कर रहे हैं. वह बताते हैं कि आजकल बनने वाले साबुन कैमिकल और कास्टिक बेस्ड होते हैं, जो केवल झाग पैदा करते हैं. इनसे शरीर को कोई लाभ नहीं होता, बल्कि यह नुकसानदायक होते हैं.

झाग से जुड़ा भ्रम
आजकल लोग इस भ्रम में हैं कि जो साबुन अधिक झाग देगा, वह उतना ही अच्छा होगा. जबकि झाग देने वाले साबुन में कास्टिक होता है. इसका आविष्कार लोहे की गंदगी साफ करने के लिए किया गया था, न कि शरीर की गंदगी हटाने के लिए. कास्टिक-बेस्ड साबुन कम समय में बनकर तैयार हो जाते हैं, इसलिए व्यापारिक दृष्टिकोण से फायदेमंद होते हैं. इन्हें झटपट बाजार में उतारा जा सकता है, इसलिए इनकी मांग बनी रहती है. हालांकि, यह साबुन त्वचा और बालों के लिए अत्यधिक हानिकारक होते हैं.

आयुर्वेदिक साबुन के फायदे
आयुर्वेदिक साबुन गुणों से भरपूर होता है और प्राचीन काल में इसे लंबी प्रक्रिया के बाद तैयार किया जाता था. इसे बनाने में 1.5 से 2 महीने का समय लगता था. यह थोड़ा कठोर होता था और इसमें झाग नहीं बनते थे, लेकिन इसके अनोखे गुण इसे त्वचा संबंधी रोगों, बालों की समस्याओं और अन्य चर्म रोगों के लिए औषधि बना देते थे.

ऐसे होता तैयार
इस साबुन को तैयार करने के लिए रीठा का सत्व, आंवला का सत्व, शिकाकाई का सत्व, जटामांसी का सत्व, भृंगराज का सत्व और मुल्तानी मिट्टी का उपयोग किया जाता था. इसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए नींबू, नीम और हल्दी भी मिलाए जाते थे.

इस साबुन में खुशबू लाने के लिए गुलाब, चंपा, चमेली और सफेद चंदन का पाउडर जैसे फूलों के रस का इस्तेमाल किया जाता था. इसे प्रक्रिया से गुजरने के बाद 1.5 से 2 महीने का समय लगता था, जिसके बाद ही लोग इसे उपयोग में लाते थे. यह साबुन आज के कैमिकल युक्त साबुनों से बिल्कुल अलग और प्राकृतिक होता था.

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